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Tuesday, May 10, 2011

नशे और हथियारों की गिरफ्त में दुनिया

बीते सप्ताह में जब आतंक के सबसे बड़े नाम के मारे जाने की खबरें आ रही थीं, ठीक उसी वक्त मैक्सिको में अमेरिका के राजदूत अपने पद से इस्तीफे की इबारत लिख रहे थे। यह इसलिए कि विकिलीक्स के एक हालिया खुलासे में अमेरिकी राजदूत कार्लोस पास्कल ने ड्रग माफिया के खिलाफ मैक्सिको के संघर्ष की आलोचना की थी। अमेरिकी सीनेट के बढ़ते दबाव के बीच विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने बेहद अनिच्छा से कार्लोस का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। इस घटना के बाद अमेरिका और मैक्सिको के रिश्ते और ज्यादा तल्ख हो गए हैं। मैक्सिको के राष्ट्रपति फिलिप कैल्ड्रन ने तो अपने सार्वजनिक बयान में यह तक कह दिया कि ड्रग माफिया का सबसे बड़ा संरक्षक अमेरिका है। यहां यह बता देना ठीक होगा कि मैक्सिको बीते एक दशक से ड्रग और अवैध हथियारों का अड्डा बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय माफिया सरगना की ज्यादतर मीटिंग बीते एक दशक में मैक्सिको में ही हुर्इं और आलम यह है कि मैक्सिको की सड़कों पर आए दिन माफिया वार की छींटे पड़े दिखाई देते हैं। पाठकों को याद ही होगा जब बीते साल सितंबर में सुरक्षा बलों ने 41 बंदूकधारी ड्रग माफिया मारे थे। यह किसी देश की संगठित अपराध के खिलाफ सबसे बड़ी कामयाबी थी। हालांकि मैक्सिको देर से जागा है और इससे पहले मैक्सिको के संगठित ड्रग और हथियारों के कारोबार ने पूरी दुनिया में अपना जाल फैला लिया है। मैक्सिको के सुरक्षा बलों की मानें, तो उनके देश में भी तामौलिप्स और न्येवो लियोन प्रांत ड्रग कारोबारियों का सबसे बड़ा अड्डा है। वे पशु फार्म और गोदामों की आड़ में हथियार छुपाते हैं और हेरोइन, मारिजुआना व कोकीन की बड़ी खेपें इधर से उधर करते हैं। ड्रग्स के फैलते अंतर्राष्ट्रीय कारोबार, आतंकवाद और राजनीतिक अर्थव्यवस्था से उसके संबंधों की पड़ताल कर रहे हैं हरि ओम वर्मा...
माफिया के बढ़ता जाल
आतंक के खिलाफ अमेरिका ने अपनी लड़ाई का मैदान जिस पश्चिम एशिया को बना रखा है, वह धीरे-धीरे नशे के कारोबार का भी केंद्र बनता जा रहा है। यह अचानक नहीं है कि पश्चिम एशिया में ड्रग माफिया की गतिविधियां बढ़ रही हैं। एक तरफ मैक्सिको सरकार और ड्रग माफिया के बीच लंबी लड़ाई में नशे के कारोबारी मुश्किल में हैं, वहीं पश्चिम एशिया की राजनीतिक अस्थिरता उनके लिए लाभ दायक है। यही कारण है कि मैक्सिको जैसे देशों के बजाए नशे के कारोबारी भविष्य के अड्डे के तौर पर पश्चिम एशिया में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।
बताते चलें कि युद्ध हमेशा से अंतर्राष्ट्रीय माफिया के लिए मुफीद साबित हुए हैं। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में सरकार विरोधी और महत्वकांक्षी राजनायिकों समेत विभिन्न तबकों के सहारे ड्रग माफिया पहले अपने लिए सुरक्षित ठिकाना खोजते हैं और धीरे-धीरे नशे की गिरफ्त को मजबूत करते हुए ताकत बढ़ते हैं। इस संजाल को समझने के लिए संगठित अपराध के इतिहास को देखना दिलचस्प है। आज ड्रग माफिया बड़े शहरों और बंदरगाहों के इर्द-गिर्द अपना डेरा जमाते हैं, इसके पहले ऐसा नहीं था। संगठित अपराध की शुरुआत में विभिन्न छोटे कस्बों और गांवों में ड्रग का कारोबार संचालित किया जाता था। हथियारों और नशीली दवाओं के व्यापार से मजबूती हासिल करने वाला माफिया समुदाय बीते दौर में कॉन्ट्रेक्ट किलिंग, धमकी, हफ्ता वसूली, मानव तस्करी, वेश्यावृत्ति जैसे काम करता था, अब ये पिछड़े हुए काम माने जाते हैं। संगठित अपराध की शुरुआत इटली के माफिया से मानी जाती है। 1800 के आसपास पुलिस की ताकत से मुकाबला करने के लिए इटली में कालाधंधा करने वाले लोग एकजुट हुए और उन्होंने अपने व्यापक हितों के तहत कुछ नियम बनाए, जिनमें सभी के कामों का बंटवारा और झगड़े के हालात में मिलजुलकर फैसला करना शामिल था। यह संगठित अपराध की शुरुआत का दौर माना जाता है। आज भी इटली के माफिया को सबसे संगठित और ताकतवर माफिया समूह माना जाता है, लेकिन इनका फैलाव इटली के बाहर बहुत ज्यादा नहीं हुआ। हालांकि ये बाद में राजनीतिक हस्तक्षेप भी करने लगे और सरकारें बनाने-बिगाड़ने के खेल में भी शामिल रहे। 1992 के बाद अपना सिक्का जमाने के लिए संगठित अपराधियों ने बम विस्फोट का सहारा लिया, जिसमें भारत भी झुलसा। यह वह दौर था, जब पूरी दुनिया में संगठित अपराध पर शिकंजा कसा जा रहा था। पलटवार करते हुए माफिया समूहों ने अराजकता फैलाने का दौर शुरू किया। 20वीं सदी की शुरुआत में सिसेलियन माफिया काफी मजबूत रहा, जिसने पहली बार हथियारों के कारोबार में दिलचस्पी ली। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद हथियारों की होड़ बढ़ी थी, और इसका फायदा माफिया ने उठाया।
भारत में नशे का कारोबार
अफीम उत्पादक समूहों गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्रेंगल के बीच में बसा भारत नशे के कारोबारियों के लिए भौगोलिक रूप से तो महत्वपूर्ण है ही, यह एक बड़े बाजार के रूप में भी देखा जाता है। भारत में ज्यादातर तस्करी सीमावर्ती क्षेत्रों से होती है, जबकि समुद्री जमीन से भारत में नशे की खेपें आती हैं। हेरोइन के अवैध कारोबार का दक्षिण एशिया में बड़ा हिस्सा भारत से होकर गुजरता है। भारत में हेरोइन कारोबार के तार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बर्मा, लाओस और थाइलैंड से जुड़े हैं। पाकिस्तान और बर्मा से स्मगल होकर लाई जाने वाली हेरोइन नेपाल के जरिए भारत से बाहर भेजी जाती है। जहाजों के जरिए ज्यादातर भारतीय अवैध कारोबार यूरोपीय देशों से होता है। मुंबई इस मामले में अवैध कारोबारियों का गढ़ है, यहां से नाइजीरिया के तार जुड़े हैं। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अनुसार भारत में करीब 40 लाख हेरोइन एडिक्ट हैं। इसके अलावा भारत में कैनाबीस, हशीश, ओपियम भी बड़े पैमाने पर सप्लाई की जाती है। 2007 में भारत 20 बड़े ड्रग हब में शामिल था, हालांकि उसके बाद से भारत में नशे का कारोबार कम हुआ है। भारत में तस्कर 500 से 700 रुपये प्रति किलो में गांजा खरीदते हैं। दूसरे मुल्कों में पहुंचते ही इसकी कीमत 6 से 10 गुना तक बढ़ जाती है। भारत में गांजे के कारोबार का रूट दक्षिण तथा मध्य क्षेत्र से होता हुआ उत्तर की ओर जाता है, जबकि विदेशों से आनेवाले नशीले द्रव्य ज्यादातर पश्चिमी बंदरगाहों पर उतरते हैं, जहां से भारत के भीतरी हिस्सों में भेजे जाते हैं। रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली चीजों जैसे फल और सब्जियों के ट्रक आदि में यह विभिन्न हिस्सों में पहुंचाए जाते हैं। जहां तक गांजे की बात है, तो यह नेपाल और पाकिस्तान के जरिए अन्य देशों तक पहुंचता है। इसी तरह भारत हथियारों के कारोबार का भी अड्डा बनता जा रहा है। 2006 में आई आॅक्सफेम, एमनेस्टी इंटरनेशनल और आईएएनएसए की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 4 करोड़ छोटे अवैध हथियार हैं, जो दुनिया के कुल 7 करोड़ 50 लाख अवैध हथियारों के आधे से ज्यादा है। छोटे अवैध हथियारों की सबसे ज्यादा खपत बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, झारखंड, ओडिसा और मध्यप्रदेश में है। दाऊद इब्राहिम के भारत से भागने के बाद भी वह भारतीय माफिया को संचालित करता है। 1992 में उसने अंतर्राष्ट्रीय माफिया से सांठगांठ के तहत भारत में अराजकता फैलाने के लिए सीरियल ब्लास्ट करवाए थे, तब से वह अंतर्राष्ट्रीय माफिया के बीच अपनी पकड़ मजबूत किए हुए है और अभी वह दुनिया के ड्रग-हथियार कारोबार में नंबर दो की हैसियत रखता है। भारत में ड्रग माफिया की ताकत का अंदाजा ब्रिटेन निवासी स्कारलेट की मौत से लगाया जा सकता है। जहां दो आरोपियों जिनमें से एक ड्रग व्यापारी है, के अपराध कबूल करने के बाद भी पुलिस जांच बंद है।
नई जमीन की तलाश में माफिया
मैक्सिको में 90 के बाद से सरकार और ड्रग माफिया के बीच खुली जंग चल रही है, जो बीते एक दशक में तेज हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया से दुनिया भर में कितनी हलचल है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में अमेरिका ने अपनी ड्रग निरोधी नीति में व्यापक बदलाव के संकेत दिए हैं। इसकी तैयारी के लिए पहले ही अमेरिका, अफगानिस्तान के 50 ड्रग माफिया को अपनी हिट लिस्ट में शामिल कर चुका है। इन ड्रग माफिया पर तालिबान से संबंध रखने का संदेह है। ड्रग के धंधे से तालिबान के पास काफी धन आ रहा है, जो उसके अब तक अमेरिकी फौजों के खिलाफ खड़े रहने के पीछे बड़ा कारण है। अमेरिका इस सप्लाई चैन को काटना चाहता है, जिससे कि उसे आतंक के खिलाफ अपनी लड़ाई में महत्वपूर्ण बढ़त मिले। मैक्सिको के बाद पश्चिम एशिया को ड्रग माफिया हसरत भरी निगाहों से देख रहे हैं, जहां उन्हें कच्चा माल और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों का जाल सुलभ ही उपलब्ध है। अमेरिकी फौजों की मौजूदगी हथियारों के कारोबार में सहूलियत उपलब्ध कराती है, लेकिन ड्रग के कारोबार के आड़े आती है। इसलिए ड्रग माफिया बीच का रास्ता निकालने की तैयारी में है। विश्लेषकों की मानें तो आने वाले दिनों में हथियारों का व्यापार पश्चिम एशिया में और ड्रग का कारोबार गोल्डन ट्राइंगल के जरिए हो सकता है।
हाल ही में मैक्सिको में गिरफ्तार हुए अरेलानो उर्फ सैमुएल ब्रेकामोंटेस के मामले से इसके संकेत मिलते हैं। अरेलानो का परिवार ड्रग ट्रेड में काफी पहले से है। इस कुख्यात परिवार के आठ भाई नशे के सौदागर हैं। मैक्सिको के सबसे मजबूत ड्रग तंत्र तिजुआना गिरोह को संचालित करने वाले अरेलानो ने हाल ही में अपनी गतिविधियां ताइवान, थाइलैंड समेत अन्य पूर्वी एशियाई देशों में तेज की थीं। तिजुआना गिरोह के प्रतिद्वंद्वी गुट सिनालाओ गिरोह के सरगना जीसस जम्बादा गार्सिया को भी हाल ही में गिरफ्तार किया गया है और वह भी पूर्वी एशिया में अपनी योजनाओं को अमली जामा पहना रहा था। जाहिर है कि आने वाले दिनों में पश्चिम एशिया और पूर्वी एशिया क्रमश: हथियार और ड्रग के अड्डे बनेंगे। यह भारत के लिए मुश्किल भरा समय होगा। भारत में गिरफ्तार हुए अफगानी मूल के एक ड्रग माफिया ने बताया था कि वह हेरोइन की तस्करी के लिए भारत आया था, और उसका अंतरराष्ट्रीय आका ड्रग माफिया हाजी जिया, कंधार के ड्रग समूह का सदस्य है। उसी के साथ भारत में नाईजीरियन एमेका पॉल भी गिरफ्तार हुआ था, जो तस्करी के धंधे में शामिल था। ऐसे कई मामले हाल में सामने आए हैं, जिससे साफ है कि आने वाले दिनों में भारत को ड्रग और हथियारों के आवागमन के तौर पर इस्तेमाल की रणनीति अंतर्राष्ट्रीय अपराध तंत्र बना रहा है।
कैसे मिलेगा छुटकारा
पूरी दुनिया को नशे और हथियारों की होड़ से मुक्ति की हालिया उम्मीद का कोई ओर छोर दिखाई नहीं देता। दुनिया के कई हिस्सों में लड़ाइयां चल रही हैं और राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर का लाभ संगठित अपराध के आका उठाते हैं। इटली, शिकागो से होते हुए मैक्सिको और अब अफगानिस्तान में बढ़ते नशे-हथियारों के कारोबार से साफ है कि युद्ध ही कालेधंधे को बढ़ावा देते हैं। हालांकि यह उम्मीद लगा लेना भी बेमानी है कि शांति काल में नशे का कारोबार बंद हो जाएगा। असल में अपराध तंत्र की मजबूती के पीछे उनकी राजनीतिक ताकत भी है। राजनीतिक छत्रछाया में पनपने वाला अपराध तंत्र अस्थिरता के दौर में मजबूती हासिल करता है और जब राजनीतिक स्थिरता की स्थिति बनती है, तो वह अपनी जान बचाने के लिए माहौल में अस्थिरता फैलाता है। इटली, मैक्सिको और कनाडा के उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि संगठित अपराध अमूमन एक या दो परिवारों के इर्द-गिर्द होते हैं। ज्यादातर माफिया समूहों में कुछ परिवार ही सक्रिय होते हैं। इटली में कम्पेनिया प्रांत में कामोर्रा परिवार का वर्चस्व है, तो कालाबरिया में नदराघेता परिवार की तूती बोलती है। इसी तरह अन्य प्रांतों में भी एक या दो परिवार ही मजबूत हैं। इटली में सिसली परिवार के अंतर्गत ही करीब 94 माफिया समूह आते हैं। इसी तरह अमेरिका में न्यूयॉर्क में जहां पांच परिवारों का वर्चस्व माफिया समूहों पर है, वहीं न्यूजर्सी में करीब सात परिवार काले धंधे में शरीक हैं। उधर पेन्सिलवेनिया में चार परिवारों के इर्द-गिर्द अपराध के पन्ने उड़ते हैं, तो अन्य प्रांतों में भी एक या दो परिवार ही अपराध संचालित करते हैं। ब्रिटेन के माफिया राज में एक ही परिवार कामोर्रा परिवार का वर्चस्व है, जो अंतोनियो ला तोरे संचालित करता है। वेनेजुएला और ब्राजील के माफिया में इटली के सिसेलियन परिवार के ही सदस्यों का बोलबाला है, तो आॅस्ट्रेलिया में दो परिवार पूरे देश में माफिया राज चलाते हैं।
अपराध विशेषज्ञ मानते हैं कि हर देश में विभिन्न राज्यों में कुछ छोटे-मोटे अपराधी समूह होत ही हैं, वे बहुत बड़ा खतरा नहीं होते, जब तक कि उनके तार राजनीतिक लोगों और अंतर्राष्ट्रीय अपराध बिरादरी से न जुड़ें। दिक्कत यह है कि सूचना और तकनीक के प्रसार, आतंकवादी कार्रवाइयों और राजनीतिक अस्थिरताओं ने अपराधियों को संगठित होने का सुलभ मौका मुहैया कराया है। जब तक यह गठजोड़ नहीं टूटता अपराधी संगठनों पर तीखे वार करना संभव नहीं हो पाएगा। साथ ही अपराधियों के पास बढ़ते कालेधन ने भी अलग तरह की दिक्कतें पैदा की हैं, जिससे वे अपने पक्ष में वातावरण बनाने में कामयाब हो जाते हैं। फिर भी मैक्सिको में यदि माफिया के पांव उखड़ते हैं, तो दुनिया को अपराध से मुक्ति में एक बड़ी सफलता मिल जाएगी।

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